रविवार, 1 मई 2011

अपने से नीचे की तरफ देख


   कोई भी बुराई जब टाप पर पहुंच जाती है तब उसका इलाज भी शुरू हो जाता है। भ्रष्टाचार भी हमारे देश में कैन्सर की तरह ऐसा फैल चुका है कि मानो हमारे समाज का एक हिस्सा बन गया हो और हमारे मिजाज में पूरी तरह प्रवेश कर चुका हो। राजधानी स्तर से लेकर ग्रामीण स्तर तक आज कोई भी काम बिना पैसा-पैरवी के नहीं हो सकता है। पैसा दे दो काम पक्का है वर्ना घूमते रहिए। रिक्शावाले से लेकर देश के पूंजीपतियों के बीच अधिक से अधिक कमाने की होड़ लगी हुई है चाहे इसके लिए कितना ही गलत काम क्यों न करना पडे़। गांव शहर की तरफ देख रहा है। शहर राजधनी की तरफ। राजधनी वाले मैट्रोपोलिटन सिटी की ओर और मैट्रोपोल वाले अमेरिका, इंगलैण्ड, जापान और फ्रांस की तरफ देख रहे हैं। इस होड़ में आदमी अपने स्वार्थ में इतना खो चुका है कि उसे, पास पड़ोस, झुग्गी-झोपड़ियों, गांव-देहात की तरपफ देखने की फुर्सत ही नहीं है। मानो हर कोई अब टाटा, बिरला, अम्बानी, विलगेट्स बनने का मिजाज लेकर ही पैदा हो रहा है।
इस प्रक्रिया में वह सारी संस्कृति जो हमें घरेलू सम्बन्धों, पड़ोसियों के अधिकार, देश-समाज के प्रति कर्त्तव्य आदि को निभाने के लिए हमारे पूर्खों ने दी थी वह अब समाप्त हो रहा है। झूट बोलना, हकमारी, शोषण आदि वह यंत्रा है जिसे लोकतंत्र की आड़ में खूब बढ़ावा मिला है। भला बताइये इस स्थिति में पहुंचने के बाद क्या कोई बिल या कानून इतना ताकतवर हो सकता है कि इसे आसानी से रोक दे? क्या क्राईम विरोधी कानून, मुजरिमों को क्राईम करने से रोक सका? क्या सर्वशिक्षा कानून आजादी के 62 सालों के बाद भी 100»सौ प्रतिशत भारतीयों को शिक्षित कर  सका? समानता की पालिसी क्या लोगों की शैक्षिक, आर्थिक एवं सामाजिक विषमताओं को दूर कर सका? कठोर से कठोर कानून भी तब तक सुधर नहीं ला सकता है जब तक आम जनता की सोंच को नहीं बदला जाएगा। ये बात तय है कि बुराईयां उपर से ही शुरू होती हैं लेकिन तब केवल उपरी सतह के लोगों के खिलाफ कानून बनकर क्या होगा जब बुराई आम जनता के रगों में प्रवेश करा दिया जा चुका हो। लोकतांत्रिक ढांचे में वोट से चुनकर आने वाले प्रतिनिधियों को ही देश-प्रदेश चलाने की जिम्मेदारी दी जाती है लेकिन ये कैसे वोट लेकर जाते हैं यह किसी से कोई ढ़की-छुपी बात नहीं है? मनी, मीडिया , मशलपावर ही आज सत्ता पर जगह दिलवाने का काम कर रही है, इसके बगैर कोई सत्ता की कुर्सी पर बैठने का सपना भी न देखे। यहीं से भ्रष्टाचार की शुरूआत होती है, चुंकी चुनाव होना ही है, जनता को वोट देना ही है, उम्मीदवार को वोट लेने के लिए सबसे सरल-सस्ता रास्ता चाहिए। पैसा फेंको तमाशा देखो सबसे सरल रास्ता है। इसमें न शिक्षा, न रोजी-रोटी और न रहने के लिए घर देने की परवाह करनी है। जनता भी सोंचती है कि उम्मीदवार जीतने के 4 साल बाद ही फिर नजर आयगा, जीतकर जाने के बाद तो राजधनी में बैठकर ये एैश करेगा, इसलिए जो दूहना है इसी समय दूह लो। ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार को कौन कानून रोकेगा। लेकिन फिर भी भ्रष्टाचार को खत्म करना इसलिए जरूरी है क्योंकि भारत जैसे देश के लिए ये कैंसर के बराबर है? लेकिन इसके लिए हमें गंभीरतापूर्वक कदम उठाना होगा। सर्वस्व लोहिया, जयप्रकाश नारायण, वी.पी.सिंह आदि ने भ्रष्टाचार के खिलाफ ही आन्दोलन छेड़ा था जिससे सरकार हिल गई। लेकिन ज्यों-ज्यों आन्दोलन चले भ्रष्टाचार तो कई गुणा और अध्कि बढ़ता चला गया। इस बार 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श सोसाईटी घोटाला, सीडब्लूजी घोटालों ने पूरे देश में सनसनी पैदा कर दी है, जिसके खिलापफ सियासी पार्टियांे के अतिरिक्त बाबा रामदेव पहली बार सामने आए और ब अन्ना हजारे हमारे सामने हैं। सरकार जन लोकपाल बिल के लिए झुकी भी, संयुक्त ड्राफ्रिटंग का काम भी शुरू हो चुका है लेकिन सिवाय कुछ सियासी लीडरों एवं पदाध्किारियों को परेशान करने के अलावा इस बिल से और क्या उम्मीद की जा सकती है। अगर हमें कैंसर रूपी भ्रष्टाचार से देश को निजात दिलाना है तो पिफर हमें इस बीमारी की जड़ पर प्रहार करना होगा। इन सारी बुराईयों की जड़ में ‘पूंजीवादी व्यवस्था‘ है जो पश्चिमी देशों की देन है। सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं में वर्गीकरण पौश क्षेत्रों की आबादकारी बड़ी बड़ी इन्डस्ट्रीयल मांल व क्रिकेट का खेल आदि क्या हैं, ये सारी पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देने का तकनीक है। अभी भारत 28 वर्षों बाद वर्ल्ड कप जीता जिसने पूरे देश के युवा वर्ग को खुशी में रोड पर ला दिया लेकिन इस नशे में युवाओं को मस्त रखने का मकसद तो केवल यही लगता है कि मौजूदा नस्ल बेरोजगारी मंहगाई एवं देशव्यापी भ्रष्टाचार को भुला रहा हैं। आजादी के बाद इसी तरह की केन्द्रीय पालिसियों ने हमारे देश को आज इस चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से कई दिशाएं फूटती हैं अब देशवासियों को तय करना है कि कौन सी दिशा का चुनाव करें ताकि गांधी लोहिया के सपनों का देश बनाया जा सके। हमें अमेरिका, यूरोप के तर्ज पर नहीं बल्कि चीन की तर्ज पर भारत को ले जाना चाहिए जहां सबों में शिक्षा, रोजी, रोटी, रहने का घर इलाज बात व मशावात मिले। हमें पूंजीवादी व्यवस्था को नकारना होगा जिसके लिए जरूरी है कि अपने देशवासियों में अपने से नीचे वालों की तरफ देखने का रूझान पैदा करे हम हकमारी को घोर पाप करार दें, सबों को बराबरी एवं इंसाफ दिलाने को धर्म समझें, अर्थात समाजवादी व्यवस्था कायम करना हमारा धर्म हो जबकि पूंजीवादी व्यवस्था जो अधर्म का प्रतीक है उस मांसिकता से देशवासियों को मुक्त करना हमारा मुख्य उद्देश्य हो। इसी दिशा में हम देशवासियों को ले चलने का रास्ता निकालें। तभी भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है।
     डा.एम.एजाज अली
 पूर्व सांसद, संस्थापक जनता दल;एम

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