मंगलवार, 31 मई 2011

दलित शक्ति का एकीकरण


डॉ.एम.एजाज अली,,पूर्व सांसद


डा.एम.एजाज अली,पूर्व सांसद
भारत में दलितों की आबादी 40 प्रतिशत से भी अधिक है। धर्म के आधार पर भले ही टूटकर दलित एवं धर्मांतरित-दलित जैसे दो खेमों में बंट गए लेकिन इनकी सामाजिक,आर्थिक एवं शक्षणिक स्थितियों में अभी भी कोई अन्तर नहीं है। 1936 में जब अनुसूचित जबति आरक्षण षुरू हुआ था उस समय डा.अम्बेडकर की पहल पर ही सर्वधर्म दलितों को इस आरक्षण श्रेणी में रखा था। मुसलमानों की आबादी का बहुत बड़ा भाग आरक्षण का हकदार था लेकिन 1950 में जब हमारा संविधान लागू हुआ उस समय एक साजिष के तहत संविधान की धारा 341( जो अनु.जा के लिए है) में धार्मिक प्रतिबंध लगाकर इसे केवल हिन्दू दलितों के लिए सुरक्षित कर दिया गया जिसके चलते सभी धर्मांतरित दलित इस श्रेणी से खारिज कर दिये गए। इस प्रतिबंध का जिस समाज पर जो भी असर हुआ हो वह तो छोटी सी चीज है, सबसे बड़ी बात तो ये हुई कि दलित षक्ति टूट कर बिखर गई। धर्मांतरित दलितों में सबसे अधिक दलित मुसलमानों की आबादी है जो आरक्षण जो अलग होने से दलित एवं मुस्लिम दोनों समूह कमजोर हो गए हालांकि 1956 एवं 1990 में क्रमषः सिख एवं बौद्ध दलितों को दोंबारा इस श्रेणी में षामिल कर लिया गया लेकिन जब तक दलित मुस्लिमों एवं ईसाईयो को इस श्रेणी में शमिलं
न्हीं किया जाएगा तब तक दलित षक्ति सियासी तौर पर ताकतवर नहीं नहीं मानी जाएगी। आज की सियासी जागरूकता एवं उलटती हुई तानाषाही के युग में भारत में दलित षक्ति का एकीकरण समय की पुकार है। 40 प्रतिशत की दलित( दलित व धर्मांतरित दलित) आबादी देश की बागडोर संभालने में सक्षम साबित हो सकती है। काष कि दलित समाज इसे समझ समझ पाता।